बुलबुल की विनाशलीला
Date: November 9, 2019
Source(s): DNV News Desk
इस लेख के लिखे जाने तक चक्रवात “बुलबुल” अपनी विनाशकारी जल थल यात्रा पूर्ण कर विलुप्त हो चुका होगा. लगभग १२५ किलोमीटर की अत्यंत विनाशकारी गति के कारण पश्चिम बंगाल और ओडिशा के तटीय जिले इसकी चपेट में आ गए और अपुष्ट सूत्रों के अनुसार इस चक्रवात से दोनों राज्यों में अबतक १० लोगों के मरने की खबर मिल रही है, और लगभग ३ लाख परिवार प्रभावित हुए है. ९ नवम्बर को इन राज्यों में आये इस मौसमी आपदा के कारण २००० से ज्यादा घर नष्ट हो गए . पश्चिम बंगाल के सर्बाधिक प्रभावित जिले उत्तरी व् दक्षिणी २४ परगना से सर्बाधिक नुकसान की ख़बरें आ रही हैं. बुलबुल की “चक्रवातीय लैंडफाल” दक्षिणी २४ परगना के सागर द्वीप पर हुई , जो कोलकाता से १०० कि.मी. दक्षिण में स्थित है और जिसे ‘गंगा सागर’ के नाम से भी जाना जाता है. द्विप व् आसपास के क्षेत्रों से व्यापक नुकसान की खबरें मिल रही हैं.
‘बुलबुल’ का जन्म ६ नवम्बर के आसपास ही बंगाल की खाड़ी में हो गया था, जब यह एक “ गहन डिप्रेशन” के रूप में बंगाल की खाड़ी में बनने लगा था, और तब से यह निरंतर गति और शक्ति प्राप्त कर एक प्रचंड चक्रवात के रूप में परिणत हो गया. मौसम वैज्ञानिकों ने इस विनाशकारी चक्रवात की भविष्यवाणी तब से ही शुरू कर दी थी, जब अरब सागर में एक और चक्रवात “महा” क्षीण शक्ति के साथ गुजरात के तटीय क्षेत्रों में प्रवेश कर रहा था.
प्रचंड शक्ती से परिपूर्ण “बुलबुल” का शनिवार की रात ८.३० के करीब सागर द्वीप पर जब लैंडफॉल हुआ , उस समय तक भारत के तटीय राज्यों पश्चिम बंगाल, ओडिशा समेत पडोसी देश बांग्लादेश पुर्णतः सचेत हो चुके थे, और लोगों को तब तक सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया जा चूका था. तथापि, पेड़ों के उखड़ने, मकानों के ध्वस्त होने आदि से भारत के इन दोनों राज्यों से १० लोगों के मरने की सूचना है.
लगभग १२५ कि.मी. प्रति घंटे की रफ़्तार चलने वाले इस चक्रवात से पश्चिम बंगाल के ९ जिले व् ओडिशा तटीय क्षेत्रों से व्यापक नुकसान की खबरें मिल रही हैं. मकानों, भवनों आदि के अलावा इस चक्रवात से बड़े पैमाने पर फसलों के नुकसान की भी खबरें मिल रही हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री ने आपदा ग्रसित इन राज्यों के हालातों का जायजा लिया, और उन्हें हर संभव सहायता का आश्वासन दिया है. गृहमंत्री अमित शाह ने राष्ट्रीय आपदा मोचन बल ( National Disaster Response Force) की १० टीमों को बंगाल में व् ६ टीमों को ओडिशा में राहत व् बचाव के लिए तैनात किया है. इसके अलावा NDRF की १८ टीमों को स्टैंडबाई पर रखा गया है.
इस विनाशकारी चक्रवात से सर्वाधिक तबाही “दक्षिणी २४ परगना” के क्षेत्रों में दर्ज की गयी है. इसके अलावा ओडिशा के जगतसिंहपुर, केंद्रपाडा, भद्रक और बालासोर में बड़े पैमाने पर नुकसान की खबरें है. रविवार को मौसम में सुधार होने के बाद लोग अपने घरों को वापस लौटने लगे थे.
भारत में वर्ष २०१९ को “चक्रवातीय वर्ष” कहा जाये तो अतोश्योक्ति न होगी. भारत के समुद्री क्षेत्र मौसम की गड़बड़ियों वाले क्षेत्र के रूप में लम्बे समय से जाने जाते रहे हैं, ये स्थानिक मौसमी विक्षोम कालांतर में चक्रवात का रूप ले लेते हैं. भारतीय समुद्र में अमूमन चक्रवात अप्रैल- मई ( (मानसून पूर्व ) तथा अक्टूबर से दिसम्बर ( मानसून उपरांत ) के बीच बनते हैं. सामान्यतः इस दौरान मौसमी विक्षोम से चक्रवात परिवर्तन की दर कम लगभग ८० प्रतिशत रहती है, हालाकि सारे मौसमी विक्षोम चक्रवात में परिवर्तित नहीं होते हैं. मौसमी विक्षोम से चक्रवात में परिवर्तन के भी कई चरण होते हैं जैसे मौसमी विक्षोम (depression), गहन मौसमी विक्षोम (Deep depression), चक्रवातीय तूफ़ान (cyclonic storm) ,तीव्र चक्रवातीय तूफ़ान( severe cyclonic storm), अत्यधिक तीव्र चक्रवातीय तूफ़ान( Extremely severe cyclonic storm), महा चक्रवात ( super cyclone). आम तौर पर वर्ष २०१० से २०१८ तक चक्रवात में रूपांतरण की दर कम ही रही , परन्तु २०१९ में ९ मौसमी विक्षोम में से ७ चक्रवातों में परिवर्तित हो गयी, जो २०१० से अब तक की अत्यधिक परिवर्तन दर है. ज्ञातव्य है की बंगाल की खाड़ी में खासतौर पर मानसून उपरांत चक्रवातों की उत्पत्ति दर , अरब सागर की अपेक्षा अधीक होती है. अरब सागर में चक्रवात अमूमन मानसून पूर्व बनते है, लेकिन यह वर्ष अपवाद के रूप में रहा. चक्रवात “वायु” और “हिका” अरब सागर में मानसून के दौरान बने, जबकि “क्यार्र” और “महा” मानसून के उपरांत उद्भव हुए. वहीँ दूसरी ओर बंगाल की खाड़ी में “पावुक” चक्रवात साल के शुरुआत में ही बने जबकि “फनी” मानसून के ठीक पूर्व व् चक्रवात “बुलबुल” मानसून उपरांत बने.
यदि आपदा प्रबंधन के दृष्टिकोण से देखा जाये तो देश में मौसम पूर्वानुमान (weather Forecasting) और पूर्व चेतावनी ( Early Warning) के क्षेत्रों में काफी प्रगति हुई है , जिसका श्रेय भारत मौसम विज्ञान बिभाग (IMD) और निजी संस्थाएं जैसे स्काईमेट को दिया जाना चाहिए. इन संस्थाओं द्वारा प्रदान की जाने वाली साप्ताहिक और पाक्षिक मौसम पूर्वानुमान के आधार पर अब चक्रवातों व् अन्य मौसम सम्बन्धी आपदा जोखिम की सटीक भविष्यवाणी संभव है.इसका प्रत्यक्ष लाभ राज्यों के आपदा प्रबंधन संस्थाओं को मिल रहा है, जिसके कारण आपदा पूर्व तैयारी और एवैकूएशन में राज्यों ने बहुत सफलता हासिल की है. यही कारण है कि देश में मौसम सम्बन्धी आपदाओं से मरने वालों की संख्या में काफी कमी आई है. तथापि आपदा प्रबंधन के अन्य क्षेत्रों यथा न्युनीकरण ( Mitigation) , पुनर्वास (Rehabilitation), पुनर्निर्माण (Reconstruction) आदि में अभी देश को और महारथ हासिल करने की ज़रुरत है.